ग्रामीणों ने उपेक्षित चकरोड को अपने खर्चे और श्रमदान से किया दुरुस्त
ग्राम प्रधान की अनदेखी के बीच ग्रामीणों ने दिखाया जनसहयोग का उदाहरण

न्यूज़ खबर इंडिया
वाराणसी विकास खण्ड चोलापुर के अंतर्गत धरसौना गांव में वर्षों से उपेक्षित एक चकरोड को ग्रामीणों ने अपने खर्चे और श्रमदान के बलबूते सुधारकर प्रशासनिक उदासीनता के खिलाफ एक मिसाल पेश की है।
यह चकरोड धरसौना गांव से तिवरान की ओर जाने वाले मार्ग को जोड़ता है, जो आजमगढ़-वाराणसी मुख्य मार्ग से जुड़ा हुआ है। यह रास्ता न केवल ग्रामीणों की रोजमर्रा की आवाजाही के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि खेतों तक पहुँचने और आपात स्थितियों में भी अहम भूमिका निभाता है।
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि इस चकरोड की हालत लंबे समय से खराब थी। बारिश में कीचड़, गड्ढों और जलजमाव के कारण यह रास्ता लगभग बंद हो जाता था, जिससे बच्चों को स्कूल जाने, किसानों को खेतों तक पहुंचने और बीमारों को अस्पताल ले जाने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था।
गांव के लोगों ने कई बार ग्राम प्रधान और विकास खण्ड कार्यालय से इस चकरोड की मरम्मत की मांग की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। अंततः ग्रामीणों ने एकजुट होकर स्वयं इसका जिम्मा उठाया। उन्होंने चंदा इकट्ठा किया, मजदूरी और सामग्री का प्रबंध किया और सामूहिक श्रमदान के जरिए चकरोड की मरम्मत कर दी।
ग्रामीण सुशील तिवारी ने बताया, “हमने प्रशासन से बहुत बार गुहार लगाई, लेकिन जब कोई मदद नहीं मिली तो हमने खुद ही इसे बनाने की ठानी। गांव के युवाओं और बुजुर्गों ने मिलकर दिन-रात मेहनत की और रास्ता अब चलने लायक बन गया है।” इस सामूहिक प्रयास की हर ओर सराहना हो रही है। गांव की महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे भी इस कार्य में उत्साह के साथ जुड़े रहे।
यह उदाहरण बताता है कि अगर प्रशासनिक स्तर पर उपेक्षा हो भी, तो सामूहिक इच्छाशक्ति और जनसहयोग से बड़े काम किए जा सकते हैं। हालांकि ग्रामीणों की यह शिकायत बनी हुई है कि जब चुनाव आते हैं तो नेता वादे करते हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर काम नहीं होता। अब ग्रामीणों की मांग है कि इस चकरोड को पक्का रास्ता बनवाया जाए ताकि आगे आने वाली पीढ़ियों को ऐसी मुश्किलों का सामना न करना पड़े।