
न्यूज़ खबर इंडिया संवाददाता
वाराणसी। भईया भरत को वन जाता देख देवता इस बात से सशंकित हैं कि भातृत्व प्रेम के ज्वार से करुणासिंधु राम प्रेम के वशीभूत न हो जाएं।क्योंकि राक्षसों के अंत के लिए ही रामावतार हुआ है।गुरु वशिष्ठ, तीनों माताओं, अयोध्या के नगरवासियों, मंत्रीगणों व राज्याभिषेक के तमाम सामग्रियों सहित भरत और शत्रुघ्न अयोध्या से वन की ओर प्रस्थान करते हैं।
शनिवार को श्री आदि रामलीला लाटभैरव वरुणा संगम काशी की लीला में भरत घंडईल का मंचन हुआ।राम को मनाकर वापस लाने व अयोध्या का राज्य ससम्मान श्री चरणों में अर्पित करने के दासत्व भाव के साथ भरत समेत समस्त नगरवासी गंगातट पर आ पहुंचे हैं।गंगापार के बाद प्रेमातुर भरत रथ से उतरकर नंगेपांव ही दुर्गम मार्गों पर चलते दिखाई दिए।भारद्वाज मुनि के आश्रम पहुंचकर लीला विश्राम हुआ।अगले दिन रामबाग में भरत मनावन की लीला होगी।
इस अवसर पर समिति की ओर से व्यास दयाशंकर त्रिपाठी, सहायक व्यास पंकज त्रिपाठी, प्रधानमंत्री कन्हैयालाल यादव, केवल कुशवाहा, संतोष साहू, श्यामसुंदर, मुरलीधर पांडेय, रामप्रसाद मौर्य, गोविंद विश्वकर्मा, धर्मेंद्र शाह, शिवम अग्रहरि, जयप्रकाश राय, महेंद्र सिंह, कामेश्वर पाठक, ओमप्रकाश प्रजापति आदि रहें।